Murtipuja ka Arth aur Astitv | Parinam | Samadhan मूर्तिपूजा का अस्तित्व और परिणाम और समाधान Existence and consequences and solution of idolatry
मूर्तिपूजा का अस्तित्व और परिणाम और समाधान Existence and consequences and solution of idolatry
अस्तित्व या मूर्तियों की वास्तविकता
“उसे सज़ा मिले, जो मूर्तिकार के हाथों से गढ़ी या ढली मूर्ति बनवा कर किसी छिपी जगह में रखे। यह परमेश्वर के लिए घिनौनी बात है। तब सभी लोग जवाब में कहें, ऐसा ही हो।”
व्यवस्था. 27.15
इसलिए इस पृथ्वी पर जो तुम्हारी शारीरिक लालसाएँ हैं, जैसे यौन कामुकता, अशुद्धता, बुरी लालसा और लालच, इन सब को मार डालो। इन्हीं कारणों से स्वर्गिक पिता का क्रोध उनकी आज्ञा न मानने वालों पर आता है।
कुलुस्सि. 3.5-6
क्योंकि बलवा करना शकुन को मानने के बराबर अपराध है और हठीलापन मूरत की पूजा के बराबर अपराध है। इसलिए कि तुमने परमेश्वर की बात मानने से इन्कार किया है, उन्होंने भी तुम्हें राजा बना रहना मंजूर नहीं किया है।
1 शमू. 15.23
स्वर्ग से परमेश्वर का दण्ड उन लोगों की सारी दुष्टता और अन्याय पर प्रगट होता है , जो अपने अन्याय और दुष्टता से सच्चाई को दबा देते हैं। परमेश्वर के बारे में जो कुछ जाना जा सकता है वह उनके बीच में साफ़-साफ़ दिखता है, क्योंकि परमेश्वर ने उन्हें यह बातें दिखायी हैं। क्योंकि इस सृष्टि की शुरूआत से उनके अनदेखे गुण साफ़-साफ़ दिखते हैं: उनकी सदा काल की शक्ति और उनका परमेश्वरीय स्वभाव प्रकृति में देखा जा सकता है। इसलिए लोग किसी तरह का बहाना बना नहीं सकते।
क्योंकि पिता परमेश्वर को जानने के बावजूद, उन्होंने सर्वश्रेष्ठ परमेश्वर जान कर उनको आदर-सम्मान या धन्यवाद नहीं दिया। इसके विपरीत वे बेकार की बातें सोचने लगे और उनका मूर्खतापूर्ण मन अन्धेरे से भर गया। हालाँकि उन्होंने बुद्धिमान होने का दावा तो किया, किन्तु वे बेवकूफ़ बन गए। उन्होंने परमेश्वर को नाशमान मनुष्य, चिड़ियों, चौपायों और रेंगने वाले पशुओं की समानता में बदल दिया।
इसलिए परमेश्वर ने उनको मन की अभिलाषाओं के कारण होने वाली अशुद्धता के सुपुर्द कर दिया, ताकि वे आपस में एक दूसरे की देह का अपमान करें। उन्होंने परमेश्वर की सच्चाई के स्थान पर झूठ को चुना और परमेश्वर को जो सदा आदर के लायक हैं छोड़कर, सृष्टि की पूजा की।
इसलिए परमेश्वर ने उन्हें शर्मनाक इच्छाओं के हवाले कर दिया, क्योंकि स्त्रियाँ पुरुषों के साथ शारीरिक सम्बन्ध को छोड़कर स्त्रियों के साथ शारीरिक सम्बन्ध रखने लगीं। इसी प्रकार से पुरुषों ने स्त्रियों के साथ स्वभाविक व्यवहार को छोड़कर पुरुषों के साथ यौन सम्बन्ध की कामना की। पुरुषों ने पुरुषों के साथ अभद्र व्यवहार किया और उस दण्ड से दुःख पाया जो उन्हें मिलना चाहिए था।
क्योंकि जब उन्होंने अपने जीवन में परमेश्वर को स्थान न देना चाहा, परमेश्वर ने भी उन्हें अनुचित काम करने के लिए, उनके गन्दे मन के हवाले कर दिया।
रोमी 1.18-28
उन लोगों ने होरेब में एक सोने का बछड़ा बनाया
और उस को पूजने लगे।
इस तरह से महान प्रभु को घास खाने वाले
जानवर की मूर्ति में बदल डाला।
भजन. 106.19-20
लोगों की मूर्तियाँ सोना-चान्दी की हैं
और इन्सान के हाथ का काम हैं।
उनके पास मुँह है,
लेकिन बोलना नामुमकिन है।
आँखेंं हैं, लेकिन वे देख नहीं सकतीं।
उनके पास कान हैं, लेकिन सुन नहीं सकतीं,
नाक हैं लेकिन सूँघ नहीं सकतीं।
इन मूर्तियों के हाथ तो होते हैं, लेकिन वे छू नहीं सकतीं,
इनके पैर भी हैं, लेकिन वे चल नहीं सकतीं।
इनके गले से कोई आवाज़ नहीं निकलती है।
इनको बनाने वाले
और वे जो
इन पर भरोसा रखते हैं, इन्हीं की तरह बन जाएँगे।
भजन. 115.4-8
मुझे छोड़ किसी दूसरे को परमेश्वर करके न मानना। तुम अपने लिए खोद कर कोई मूर्ति न बनाना, न किसी की प्रतिमा बनाना, जो आकाश में या पृथ्वी पर, या पृथ्वी के जल में है। तुम उनके सामने घुटने मत टेकना, न उनकी पूजा करना, क्योंकि मैं तुम्हारा परमेश्वर परमेश्वर जलन रखने वाले परमेश्वर हूँ। जो मुझ से दुश्मनी रखते हैं, उनके बेटों, पोतों, परपोतों और पितरों को भी दण्ड देता हूँ।
निर्ग 20.3-5
उनके देवताओं की मूर्तियों को आग में जला देना। जिस चाँदी और सोने से वे मढ़ी हों उसे मत लेना, नहीं तो तुम फँस जाओगे, क्योंकि ऐसी चीज़ें परमेश्वर की निगाह में घिनौनी हैं। कोई घिनौनी वस्तु अपने घर में न लाना, नही तो तुम भी उनकी तरह नाश होने के सामान की तरह हो जाओगे। उसे सत्यानाश होने कि वस्तु समझकर उस से नफ़रत करना। तुम उसे न चाहना , क्योंकि वह अशुद्ध वस्तु है।
व्यवस्था. 7.25-26
वे लोग मूर्तियों की पूजा करने लगे,
जिस से वे बुरी तरह से फँस गए।
अपने बेटे-बेटियों को उन्होंने पिशाचों के लिए कुर्बान से किया।
बेगुनाह लोगों का उन लोगों ने खून बहाया।
अपने बेटे-बेटियों के खून को कनान की मूर्तियों के सामने कुर्बान किया।
इस तरह से देश गंदा हो गया।
भजन. 106.36-38
इसलिए तुम परमेश्वर की तुलना किस से करोगे? मूर्ति को कारीगर ढालकर बनाता है। सुनार मूर्ति को सोने से मढ़ता तथा चाँदी जंजीर से सजाता है। जो इन्सान गरीब होने के कारण इतना नहीं चढ़ा सकता, वह ऐसी लकड़ी का चुनाव करता है, जो कभी नहीं सड़ेगी। तब वह अपने लिए एक योग्य कारीगर हासिल करता है, ताकि एक मज़बूत मूर्ति बना ले।
यशा. 40.18-20
सुनो, उन सभी के काम बेकार हैं। उनकी बनायी गई मूर्तियाँ झूठ हैं।
यशा. 41.29
जो लोग खुदी हुई और ढाली मूरतों पर भरोसा रखते हैं और उनसे कहते हैं, “तुम हमारे ईश्वर हो।” ऐसे लोग शर्मिन्दा हो जाएँगे।
यशा. 42.17
“जो लोग खोदकर मूरत बनाते हैं, वे सभी बेकार हैं और जिन वस्तुओं मे वे आनन्द की खोज करते हैं, उन से कुछ फायदा न होगा। उनके गवाह खुद न तो कुछ देखते हैं और न ही जानते हैं। किसने देवता को बनाकर या मूर्ति को ढालकर, बेकार काम किया। देखो, उसके सभी साथियों को लज्जित होना पड़ेगा, क्योंकि बनानेवाले इन्सान ही तो हैं। वे सभी खड़े हो जाएँ, इकट्ठे हो जाएँ, वे थरथराएँ और शर्मिन्दा हों। एक मनुष्य जलते अँगारों पर काटने वाला हथियार बनाता और हथौड़ों से बनाता है। वह अपनी ताकतवर बाजुओं से काम करता है, उसे भूख भी लगती है, उसकी ताकत कम हो जाती है, वह पानी नहीं पीता है, और थक जाता है। दूसरा इन्सान लकड़ी की मूर्ति बनाता है। वह धागे से उस पर लाल निशान लगाता है। वह रन्दा इस्तेमाल करता है और परकार से रेखा खींचकर उसे सुन्दर मनुष्य का आकार देता है। इसके बाद ही उसे किसी घर में स्थापित किया जा सकता है। वह देवदार को काटता और जंगल के पेड़ों में से अपने लिए सनौवर या बांज पेड़ का एक पेड़ छाँटकर उस पर निगरानी रखता है। वह चीड़ का पौधा लगाता है, जो बरसात का पानी पाकर बढ़ता जाता है। इसी का इस्तेमाल बाद में मनुष्य जलाने के लिए करता है। कुछ का इस्तेमाल वह हाथ तापने केलिए करता है। खाना बनाने के लिए भी उसका उपयोग करता है। कुछ लकड़ी से वह मूर्ति बनाकर उसे पूजता है या उसके सामने सिज़दा करता है। उसका आधा हिस्सा वह आग में जलाता है और उस पर मांस भूंजकर खाता और तृप्त हो जाता है। फिर आग तापकर कहता है, अहा! मुझे गर्माहट मिल रही है, मैं आग देख सकता हूँ। बाकी हिस्से से वह एक देवता अर्थात एक खुदी हुई मूर्ति बनाता है। वह उसके सामने झुकता है, उसकी पूजा करता है। उससे वह प्रार्थना करके कहता है, ‘ मुझे बचाईये, क्योंकि आप ही मेरे ईश्वर हैं।’ वे यह सच्चाई नहीं जानते हैं, न ही समझते हैं, क्योंकि परमेश्वर ने उनकी आँखें बन्द कर दी हैं, ताकि देख न पाएँ। उनके मन ऐसे कर दिये कि समझ न सकें। लोग इस पर ध्यान नहीं देते हैं, न ही उनके पास इतनी समझ है कि कह सकें, ‘ उसका एक हिस्सा मैंने जला दिया और उसके अंगारों पर रोटी पकाई है। मैंने गोश्त भूनकर खाया है, तब मैं क्या उसके आधे हिस्से से घिनौनी वस्तु बनाऊँ?” क्या मैं लकड़ी के टुकड़े की पूजा-पाट करुँ?” वह राख से पेट भरता है। छली मन ने उसे भटका दिया है। वह न अपने आप को बचा सकता है और न ही यह कह सकता है, ‘जो मेरे दाहिने हाथ में है वह सब क्या झूठ नहीं?
यशा. 44.9-20
आस-पास के देशों से शरणार्थी लोग इकट्ठे होकर यहाँ आएँ। लकड़ी के बनाए देवी-देवता किसी को बचा नहीं सकते, उन्हें यहाँ वहाँ ले जाना बेवकूफी है।
यशा. 45.20
क्योंकि दूसरे देशोंं के रीति रिवाज बेकार के हैं। मूरते जंगल से काटी गई पेड़ की लकड़ी है। इसे कारीगर बसूले से बनाता है। लोग उसे चाँदी सोने से मढ़ते हैं। हथौड़े से कीले ठोंक-ठोंक कर स्थिर करते हैं, ताकि वह हिल-डुल न सके। वे लोग ककड़ी के खेत में खड़े किए गए पुतले की तरह हैं जो बोल सकने में असमर्थ है। उनको उठाए जाने की ज़रूरत पड़ती है।
यिर्म. 10.3-5
तुम उनसे कहो, ‘‘ये देवता जिन्होंने आकाश-पृथ्वी को नहीं बनाया, वे सभी एक दिन बर्बाद हो जाएँगे।
यिर्म. 10.11
क्या इन्सान ईश्वरों को बना सकता है? नहीं, वे ईश्वर हो ही नहीं सकते।’
यिर्म. 16.20
जिस परमेश्वर ने इस दुनिया और जो कुछ इस में है, उसे बनाया है, वह स्वर्ग और पृथ्वी के मालिक हैं, हाथ से बनाए हुए मन्दिरों में नहीं रहते हैं। और इसलिए कि वही सब को ज़िन्दगी, सांस और सब कुछ देते हैं, उन्हें इन्सान के हाथों की सेवा या किसी और चीज़ की ज़रूरत नहीं। उन्हीं ने एक ही आदमी से सारी पृथ्वी पर रहने वाले सभी लोगों को बनाया और उनके समयों तथा रहने की सरहद को ठहराया। ताकि वे अपने परमेश्वर की चाहत रखें और उन तक पहुँच कर उन्हें पा लें, क्योंकि वह हम में से किसी से दूर नहीं हैं। क्योंकि उन्हीं में हम रहते हैं, चलते-फिरते हैं और जीवित पाए जाते हैं। जैसा कि तुम्हारे कुछ कवियों ने कहा है, “हम सभी की शुरुआत परमेश्वर आप ही से है।”
और क्योंकि हमें परमेश्वर ही ने बनाया है, हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि परमेश्वर सोने, चाँदी या पत्थर की तरह हैं, जिन्हें एक आकृति दी जाती है।
प्रे.काम 17.24-29
फिर भी महामारियों से बचे लोग जो नहीं मारे गए थे, अपने बुरे कामों में बने रहे - यह कि उन्होंने बेजान - सोने, चाँदी, पीतल, पत्थर और लकड़ी की मूर्तियों की पूजा बन्द नहीं की और उन्होंने पश्चाताप नहीं किया। ये मूर्तियाँ न तो देख सकती, न सुन सकती और न चल सकती थीं। महामारी से बचे हुए लोगों में हत्या करने, जादू-टोने, व्यभिचार, और चोरी करने से मन नहीं फिराया।
प्र. व. 9.20-21
“इसलिए जहाँ चढ़ायी हुयी चीज़ों को खाने का सवाल है, हम जानते हैं, कि “मूर्ति अपने आप में कुछ नहीं है” और एक परमेश्वर को छोड़ कोई नहीं।” यद्यपि आकाश और पृथ्वी पर कहलाए जाने वाले कुछ ईश्वर और प्रभु हैं फिर भी हमारे लिए एक ही परमेश्वर पिता हैं, जिन से सब कुछ है और जिन के लिए हम जीवित हैं। एक ही प्रभु यीशु मसीह हैं जिन के द्वारा परमेश्वर ने सब कुछ बनाया और हमें जीवन दिया।
1 कुरिन्थ. 8.4-6
क्या मैं यह कहना चाह रहा हूँ कि मूर्तियाँ या उन पर चढ़ायी हुयी वस्तुएँ कुछ मायने रखती हैं? नहीं, मेरे कहने का मतलब यह है कि गैर यहूदी जो चढ़ावा चढ़ाते हैं, वह दुष्टात्माओं के लिए होता है, परमेश्वर के लिए नहीं। इसलिए मैं नहीं चाहता कि तुम दुष्टात्माओं के साथ किसी तरह से साझा करो।
1 कुरिन्थ. 10.19-20
परिणाम
“कायर, अविश्वासी, दुष्ट, हत्यारों, व्यभिचारियों, जादूगरों, मूर्तिपूजकों और झूठों का हिस्सा उस झील में होगा, जो आग और गंधक से जलती रहती है। यही दूसरी मौत है”।
प्र. व. 21.8
समाधान
क्या तुम्हें नहीं मालूम कि तुम परमेश्वर का भवन हो और परमेश्वर का आत्मा तुम्हारे भीतर रहता है। यदि कोई परमेश्वर के भवन को बर्बाद करे, परमेश्वर उस व्यक्ति को बर्बाद करेगा। इसलिए कि परमेश्वर का भवन पवित्र है और तुम्हीं वह भवन हो।
1 कुरिन्थ. 3.16-17
क्या तुम नहीं जानते कि तुम्हारी देह पवित्र आत्मा का मंदिर है? वह तुम में है, तुम्हें परमेश्वर से मिला है और तुम अपने नहीं हो। तुम बड़ी कीमत देकर खरीदे गए थे। इसलिए तुम्हें अपनी देह से परमेश्वर को आदर देना चाहिए।
1 कुरिन्थ. 6.19-20
परमेश्वर आत्मा हैं, और अवश्य है कि उनके भजन करने वाले आत्मा और सच्चाई से भजन करें।
यूह 4.24
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