धर्म और धार्मिकता में क्या फर्क है ?
धर्म मनुष्य के सिद्धांतों पर आधारित होता है
धार्मिकता परमेश्वर के आज्ञा पर आधारित होता है।
धर्म मनुष्यों के बनाये हुए नियमों का सिद्धांतों का आज्ञाओं का आधार है और मनुष्य एक प्रकार के धर्म के अंधकार में तथा धर्म के घमंड में जीवन जी रहा है। धर्म की प्रमुख शिक्षा शारीरिक नियमों पर आधारित हैं जैसे क्या खाना है क्या नहीं खाना हैं क्या पहनना हैं क्या नहीं पहनना हैं । धर्म एक प्रकार का शारीरिक रोकथाम की शिक्षा प्रदान करती हैं जो मनुष्य के किसी काम की नहीं।
धर्म शारीरिक नही परन्तु आत्मिक क्षेत्र का भाग है परंतु धर्म मे आत्मिक जीवन की बात नहीं सिर्फ और सिर्फ शारीरिक नियम ही है। इसलिए धर्म मनुष्यों का बनाया हुआ सिद्धांत है।
धार्मिकता धर्म का विपरीत है धार्मिकता परमेश्वर के बनाए हुए नियमों का सिद्धांतों का आज्ञाओ का आधार है। धार्मिकता आपको धर्म के बंधनों से छुटकारा प्रदान करती है। धार्मिकता शारीरिक नियम पर आधारित नहीं है परंतु आत्मिक जीवन पर आधारित हैं। धार्मिकता शारीरिक सिद्धांतों पर आधारित नहीं है परंतु धार्मिकता आत्मिक सिद्धांतों पर आधारित है जो परमेश्वर की ओर से है धार्मिकता का संस्थापक परमेश्वर है परमेश्वर ने धर्म नहीं धार्मिकता को बनाया है परमेश्वर ने मनुष्य को धर्म नहीं धार्मिकता दी है।
धर्म बांधता है धार्मिकता छुड़ाता है।
धर्म मनुष्य को बांधता है शारीरिक नियमों के द्वारा। धर्म में स्वतंत्रता नहीं है धर्म आपके खाने पीने कपड़े पहनने की सारी आजादी खत्म कर देती है धर्म जातिवाद पर आधारित है ऊंच-नीच पर आधारित है जो मनुष्य में घृणा पैदा करती है धर्म मनुष्य को उच्च नीच में बांधता है जातिवाद में बांधता है धर्म मनुष्य को अलग अलग कर देता है धर्म मनुष्यों के एकता को खत्म कर देता है धर्म मनुष्य में विभिनता लेकर आता है धर्म मनुष्य को खोखला कर देता है धर्म आपको नफरत में बांधता है धर्म आपको अंधकार की गुलामी में ले जाता है। धर्म आपको छुड़ाता नहीं परंतु बांधता है यही सच्चाई है धर्म की। जब धर्म भगवानों को एक नहीं कर सका तो वह मनुष्य को एकता में कैसे ला सकता है। धर्म में सच्चाई नहीं तो वह आपको कैसे स्वतंत्र कर सकती है। धर्म आपको पापों से छुड़ा नहीं सकता।
धार्मिकता आपको छुड़ाता है पापों से अंधकार से और इस संसार के झूठ से। धार्मिकता पापों की गुलामी से आपको हमेशा के लिए छुड़ाता है। धार्मिकता आप को बांधता नहीं वरन छुड़ाता हैं।
धार्मिकता आपसे जबरदस्ती कुछ काम नहीं करवाता। धार्मिकता परमेश्वर के कामों पर आधारित है ना कि मनुष्य के कामों पर नियमों पर और ना ही आज्ञाओं पर और ना ही सिद्धांतों पर। धार्मिकता आपके जीवन के हर क्षेत्र में स्वतंत्रता प्रदान करती है ना की गुलामी। धार्मिकता में जातिवाद नहीं होता और ना ही ऊँच नीच होता है।
धर्म मनुष्य की इच्छा को पूरा करता है धार्मिकता परमेश्वर की इच्छा पूरी करता है।
धर्म में मनुष्य अपनी ही इच्छा पूरी करता हैं और अपने ही स्वार्थों को पूरा करता हैं। धर्म धन का स्रोत हैं ना कि भक्ति का। धर्म के नाम पर लोग बट गए और अपना ही अलग अलग समाज और समुदाय को बना लिया। धर्म पक्षपात करता है और एक समाज से या समुदाय से प्रेम करता है तो दूसरे समुदाय या समाज से घृणा करता है। धर्म स्वार्थी हैं उस पर चलने वाले भी स्वार्थी बन जाते हैं।
धार्मिकता एकमात्र परमेश्वर की इच्छा को पूरा करता है और परमेश्वर को ही प्रसन्न करता है ना कि मनुष्य को। धार्मिकता में प्रेम है और धार्मिकता सभी मानव जाति से प्रेम करता है धार्मिकता मनुष्य को नैतिक व परमेश्वर का सा स्वभाव प्रदान करती है। धार्मिकता परमेश्वरीय जीवन प्रदान करता है पवित्र जीवन प्रदान करता है।
धर्म मनुष्य की स्वतंत्रता को समाप्त कर देती है धार्मिकता मनुष्य को स्वतंत्र करती है।
धर्म मांग करती है धार्मिकता मांग पूरी करती हैं।
धर्म मनुष्य का भय मानना सिखाती है धार्मिकता परमेश्वर का भय मानना सिखाती है।
धर्म मनुष्य के कार्य व कर्मों पर आधारित होता है धार्मिकता परमेश्वर के कार्य और विश्वास पर आधारित है।
धर्म के काम दिखावटी होते है धर्म के कामों में मनुष्यों की बड़ाई होती हैं। धार्मिकता के कामों में दिखावा नहीं होता और ना ही मनुष्यों को प्रसन्न किया जाता हैं।
धर्म ने मनुष्यों को अलग अलग कर दिया धार्मिकता ने सम्पूर्ण मानवजाति को एक कर दिया।
धर्म कर्मों पर आधारित होता हैं धार्मिकता परमेश्वर के अनुग्रह और दया पर आधारित होता है।
धर्म मनुष्यों को झूठी शांति देता हैं परंतु धार्मिकता मनुष्यों को सदाकाल की सच्ची शांति देता हैं।
धर्म मनुष्यों को परमेश्वर से नहीं जोड़ती परन्तु एकमात्र धार्मिकता ही मनुष्यों को परमेश्वर से जोड़ती है।
धर्म मनुष्यों के बनाये हुये ईश्वर हैं धार्मिकता प्रभु यीशु मसीह हैं।।
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