1. पाप का परिभाषा क्या है?
जिस प्रकार देश के कानून का पालन न करने वाले को अपराधी कहा जाता है, उसी प्रकार परमेश्वर के आज्ञाओ को न मानने वाले को पापी कहा जाता है।
परमेश्वर के नियमों के विरुद्ध कोई कार्य को अपराध कहा जाता हैं। धार्मिक संदर्भ में किसी प्रकार के अपराध को पाप गिना जाता हैं। जैसे अपराध का फैसला देश का कानून करता है वैसे ही पाप का फैसला एकमात्र सृष्टिकर्ता परमेश्वर करता है। धार्मिक सन्दर्भ में ही पाप, पापी, अधर्म, अधर्मी जैसे शब्द प्रयोग में आते है। पवित्रशास्त्र बाइबल में लिखा है कि जो पाप करता है, वह अधर्म का कार्य करता है क्योंकि पाप का अर्थ है उल्लंघन या अधर्म का समर्थन करना। (परमेश्वर की आज्ञा का विरोध करना) पाप का सार स्वार्थ है। लोगों ने अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए पाप का सहारा लिया, अर्थात परमेश्वर का विरोध करके, अपने स्वार्थ या अपनी इच्छा को पूरा किया।
2. पाप ने दुनिया में कैसे प्रवेश किया?
अनाज्ञाकारिता के कारण पाप ने जगत में प्रवेश किया। पवित्र शास्त्र बाइबल में लिखा है प्रथम मनुष्य आदम के अनाज्ञाकारिता के कारण पाप का जगत में प्रवेश हुआ और पाप के द्वारा मृत्यु सभी मनुष्यों में फैल गई। जगत के उत्पत्ति के समय मृत्यु नहीं थीं लेकिन पाप के बाद ही दो प्रकार की मृत्यु ने जगत में प्रवेश किया। ( आत्मिक मृत्यु और शारीरिक मृत्यु )।
क्योंकि सबने पाप किया हैं और आदम के समान सब ने पाप किया और अपनी बुरी इच्छाओं के अधीन जीवन जीने लगे। आज आदम के समान आप भी स्वतंत्र है पाप करने और न करने के लिए भी। कई बार लोग दोष लगाते हैं की आदम के वजह से पाप जगत में आया लेकिन वह लोग ये नहीं सोचते कि वे खुद आज भी क्यों पाप कर रहे हैं जब की वे आजाद हैं पाप नहीं करने के लिए और नहीं करने के लिए फिर भी लोग पाप करते रहते है। आज पाप लोगों का जीवन शैली बन गया है। कई बार हम दूसरों को समझाते हैं कि अधर्म मत करो बुराई मत करो गलत काम मत करो लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि वे भी वही काम करते हैं जो वो दूसरों को मना करते हैं न करने के लिए। जब से पाप ने जगत में प्रवेश किया सारी दुनिया के सभी जातियों के लोग पाप की गुलामी मेंचले गए।
3. पाप का परिणाम या दंड क्या है ?
सर्वप्रथम पाप ने जगत में मृत्यु को जन्म दिया और पाप ने जगत को और मनुष्यों को विकृत और शापित बना दिया। मनुष्यों का जीवन स्वार्थी, दुष्ट, घृणित, , अनैतिक, कामुक, व्यभिचारी, क्रोधी, ईर्ष्यालु, झगड़ालू, हत्यारा और अपवित्र बन गया और फिर उन्होंने परमेश्वर की सच्चाई को बदलकर झूठ में परिवर्तित कर दिया और सृष्टि की उपासना, आराधना और सेवा की, न कि उस सृष्टि कर्ता की।
लोगों ने अपने पापों में आनंद के कारण जीवित परमेश्वर को त्याग दिया। पाप ने मनुष्य के आत्मा को परमेश्वर से दूर कर दिया और पाप ने आत्मिक और शारीरिक मृत्यु को जन्म दिया। मनुष्य का एक बार मरना नियुक्त हैं जिसे हम शारीरिक मृत्यु कहते हैं। शारीरिक मृत्यु के बाद मनुष्य के आत्मा को आग की झील जिसे नरक कहा जाता हैं डाल दिया जाता हैं और उसकी आत्मा सदाकाल के लिए पीड़ा और पीड़ा सहती रहेंगी। सदाकाल के लिए इसलिए आग की झील में डाला जायेगा क्योंकि आत्मा कभी नहीं मरती। आत्मिक मृत्यु को दूसरी मृत्यु कहते हैं। आग की झील में कौन से लोग डाले जायेंगे? वे लोग जिनके पाप क्षमा नहीं हुए और जिन्होंने मसीह में विश्वास नहीं किया और वे लोग भी जो अंत तक मसीह में विश्वासयोग्य नहीं रहे।
4. पाप का समाधान क्या है?
पाप का समाधान प्रभु यीशु मसीह है। यीशु नाम का अर्थ है पापों से उद्धार करने वाला। उद्धार का अर्थ है बचाने वाला या सुरक्षित करने वाला। एकमात्र प्रभु यीशु मसीह हैं जिनके पास पाप क्षमा करने का अधिकार हैं और किसी के पास नहीं क्योंकि एकमात्र यीशु ही है जो पापियों के लिए बलिदान हुआ कोई और नही। पवित्रशास्त्र बाइबल में लिखा हैं बिना लहू बहाये पाप की क्षमा नहीं है। यीशु के आने से पहले मनुष्य अपने पापों के लिए पशुओं का इस्तेमाल करते थे। पशुओं का लहू मनुष्य के पापों को ढकता था परंतु सदा के लिए दूर नहीं होता था। यीशु के आने के बाद मनुष्यों का पाप सदाकाल के लिए दूर हो गया क्योंकि यीशु मसीह का लहू निर्दोष व निष्कलंक व निष्पाप था। जैसे आज अस्पताल मे किसी बीमार को रक्त की जरूरत होती हैं तो डॉक्टर उसे किसी पशु का रक्त नही चढ़ाता बल्कि उसे किसी मनुष्य का रक्त चढ़ाया जाता हैं। पशुओं का लहू मनुष्य के पापो को दूर नही कर सकता। मनुष्य के पापों के लिए किसी धर्मी व निर्दोष व्यक्ति की जरूरत थी जो पृथ्वी में कहीं नहीं था क्योंकि सबने पाप किया था और सब पाप से ग्रसित थे इसलिए यीशु मसीह मनुष्य बनकर इस पृथ्वी में आया ताकि अपने लहू से मनुष्य के पापों को सदाकाल के लिए दूर करे। प्रभु यीशु मसीह ने कहा मैं धर्मियों को नहीं परन्तु पापियों को बचाने आया हूं। हम सभी जानते हैं कि पाप का मूल्य या परिणाम मृत्यु है अब परमेश्वर की व्यवस्था की मांग है मृत्यु के बदले मृत्यु अर्थात सब जातियों के लोगों के पापों के कीमत की सजा जो मृत्यु हैं प्रभु यीशु मसीह ने अपने ऊपर लेकर जो पवित्र निर्दोष निष्कलंक मनुष्य था क्रूस पर बलिदान हो गया ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे वह अपने सब पापों से छुटकारा पायेगा और मनुष्य जाति की सारी पीढ़ी जो हैं और जो आने वाली हैं पापों की सजा से छुटकारा पायेगा।
अब सवाल है जो विश्वास करे वहीं उद्धार पायेगा सब नही क्योंकि सब लोग यीशु मसीह पर विश्वास नहीं करते क्योंकि लोग समझते हैं कि यीशु मसीह विदेशी धर्म या ईसाई धर्म का प्रवर्तक या संस्थापक है।
बाइबल कहता है कि यीशु मसीह ना किसी धर्म का प्रवर्तक हैं ना ही संस्थापक। बहुत लोगों ने आज प्रभु यीशु मसीह को अपने इनकम का मार्ग बना लिया जिस कारण लोग यीशु की सच्चाई को जानने में असमर्थ हो गये। यीशु ने कहा तुम सच्चाई को जानोगे तो सच्चाई तुम्हें आज़ाद करेंगी और सच यीशु मसीह है। एक बार यीशु मसीह को अपने जीवन में मौका दे वो आपके जीवन को बदल देगा आपके धर्म को नहीं।
अपना जीवन परिवर्तन करो धर्म नही। मनुष्य धर्म परिवर्तन करता है परन्तु परमेश्वर जीवन परिवर्तन करता है।
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