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जैसा शरीर ऑक्सीजन के बिना मरा हुआ हैं वैसा ही आत्मा प्रार्थना के बिना मरा हुआ है।


प्रार्थना हमें इसलिए करना चाहिए क्योंकि परमेश्वर हमारा पिता हैं और प्रार्थना के माध्यम से ही हम पिता परमेश्वर से बातचीत करते हैं यदि प्रार्थना नही करेंगे तो इसका मतलब है की हमने पिता परमेश्वर से बात बंद कर दी है कौन पुत्र अपने पिता से बात नही करता ?

इसलिए प्रार्थना का महत्व हमारे जीवन में अधिक होना चाहिए।
जैसा शरीर ऑक्सीजन के बिना मरा हुआ हैं वैसा ही आत्मा प्रार्थना के बिना मरा हुआ है।
बाइबल में हमेशा से ही परमेश्वर के लोगों ने हर परिस्थितियों में प्रार्थना का ही सहारा लिया।
प्रेरित पौलुस ने कहा किसी बात की चिंता मत करो परन्तु धन्यवाद के साथ विनती प्रार्थना निवेदन परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित किये जायें।
परमेश्वर की इच्छा हैं की हम हर परिस्थितियों में प्रार्थना करें सुख हो चाहें दुःख आशा हो या निराशा चिंतित हो या पीड़ित कमी हो या घटी अकाल हो या महामारी विपत्ति हो या आपदा जीवन हो या मृत्यु बीमार हो या स्वस्थ।
मनुष्य को सदा प्रार्थना करते रहना चाहिए।
मनुष्य का प्रथम सेवकाई हैं प्रार्थना।
प्रार्थना ही सेवकाई की बुनियाद है।
प्रार्थना ही आधार है।
जब देश स्थिर हो या अस्थिर प्रार्थना करते रहना चाहिए।
प्रार्थना में हिम्मत नहीं हारना चाहिए।

1. क्योंकि प्रार्थना माध्यम है ताकि आप अपनी चिंता को प्रार्थना के माध्यम से परमेश्वर के सामने उपस्थित कर सके।
जब हम संकट में होते है या किसी प्रकार के दुविधा में होते हैं तब हम प्रार्थना करते हैं। प्रार्थना का कोई समय नही होता।आप कभी भी किसी भी समय प्रार्थना कर सकते हैं।
यदि आप चिंतित है पीड़ित हैं बीमार है असमंज में है कुछ भी समझ नही आ रहा है या कुछ करना चाहते हैं तो आप प्रार्थना करें।


2. क्योंकि आप अपनी हर बात प्रार्थना के द्वारा परमेश्वर के पास पहुँचा सकते हैं।
आप अपनी मन की सारी बातें परमेश्वर को प्रार्थना के द्वारा बता सकते हैं।


3. क्योंकि प्रार्थना माध्यम है परमेश्वर से बात करने का।
प्रार्थना ही वो माध्यम हैं जिससे आप परमेश्वर से सीधे बात कर सकते है।


4. क्योंकि प्रार्थना करना परमेश्वर की इच्छा हैं।
जब आप प्रार्थना करते हैं तब आप परमेश्वर की इच्छा पूरी करते हैं।


5. क्योंकि प्रार्थना करना परमेश्वर की आज्ञा हैं।
जो लोग हमें सताते हैं उनके लिए प्रार्थना करो प्रभु यीशु मसीह की पहली आज्ञा थीं।


6. क्योंकि प्रार्थना करना यीशु मसीह का अनुकरण करना हैं।
प्रार्थना का जीवन ही आपको यीशु मसीह के समान सेवा करने के योग्य बनाता है।


7. क्योंकि प्रार्थना करना परमेश्वर का दिया हुआ अधिकार है।
प्रार्थना के द्वारा हम अपने अधिकारों को पूरा करते हैं जो परमेश्वर ने हमे दिया।


8. क्योंकि प्रार्थना के द्वारा हम पृथ्वी पर राज्य करते हैं।
परमेश्वर के राज्य को स्थापित करने के द्वारा।

9. क्योंकि प्रार्थना करना आत्मिक उन्नति का स्रोत हैं।
प्रार्थना हमारे आत्मिक जीवन को बल देता है।


10. क्योंकि प्रार्थना कुँजी है।
प्रार्थना वो चाबी हैं जिससे हम बंद रास्तों को खोलते हैं।


11. क्योंकि प्रार्थना हमारे जीवन में द्वार खोलता है।
हमारे जीवन के सब द्वारों को खोलता है।



12. क्योंकि प्रार्थना परमेश्वर की उपस्थिति में जाने का मार्ग हैं।
प्रार्थना प्रवेशद्वार है।


13. क्योंकि प्रार्थना के समय पवित्रआत्मा हमें शिक्षा देता हैं।
पवित्रशास्त्र को समझाता है।


14. क्योंकि प्रार्थना हमारे सामर्थ और अधिकार को बड़ाता हैं।
अधिक प्रार्थना अधिक सामर्थ।


15. क्योंकि प्रार्थना करना दूसरों की सहायता करने का माध्यम है।
चेलों ने बार बार कहा प्रार्थना के द्वारा हमारी सहायता करो।

16. क्योंकि प्रार्थना हमारे आत्मिक जीवन का ऑक्सीजन है।
जैसा शरीर ऑक्सीजन के बिना मरा हुआ हैं वैसा ही आत्मा प्रार्थना के बिना मरा हुआ है।

# इन सब बातों के अलावा प्रभु यीशु मसीह ने पृथ्वी में रहने के दिनों में अधिकतर रात प्रार्थना में बिताया।
प्रभु यीशु मसीह ने प्रार्थना को अधिक महत्व दिया ताकि उसके चेले भी प्रार्थना को महत्व दे।
138 बार से अधिक बार प्रार्थना के बारे में नया नियम में लिखा हुआ है।
प्रभु यीशु मसीह प्रार्थना करने का सर्वोत्तम उदाहरण हैं जो हमें प्रार्थना करने के लिए प्रोत्साहित करता है। यीशु ने अपने जीवनकाल में सर्वाधिक प्रार्थना की यहां तक की क्रूस पर चढ़ने से पहले भी उन्होंने प्रार्थना किया।



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