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अधिकत्तर लोग यह जानते हैं कि हमें सुसमाचार सुनाना चाहिए।पर मेरा सवाल यह है कि सुसमाचार क्यों सुनाना चाहिए ?


अधिकत्तर लोग यह जानते हैं कि हमें सुसमाचार सुनाना चाहिए।
पर मेरा सवाल यह है कि सुसमाचार क्यों सुनाना चाहिए ? 

1. पहला कारण यह है कि लोग मरे हुये हैं और उन्हें दूसरी मृत्यु से बचाने के लिए।

इसलिए, एक इन्सान के द्वारा बलवईपन की शुरुआत इस दुनिया में हुई और इसी वजह से मौत की भी। सभी के विद्रोही हो जाने के कारण मौत भी सब लोगों में फैलती गयी।
रोमी 5.12

तुम जो अपने अपराधों और दुष्टता में मरे हुए थे उन्होंने तुम्हें जीवन दिया।
इफिसि. 2.1

इसलिए कि गुनाह की मजदूरी परमेश्‍वर से सदा का अलगाव है, लेकिन हमारे स्वामी यीशु मसीह में परमेश्‍वर का ईनाम अनन्त जीवन है।
रोमी 6.23

मौत तथा अधोलोक आग की झील में डाल दिए गए। यह दूसरी मौत है। जिस किसी का नाम जीवन की किताब में लिखा हुआ नहीं पाया गया, वह आग की झील में डाल दिया गया।
प्र. व. 20.14-15

इस मृत्यु से बचाने के लिए मसीह ख़ुद मर गया।
क्योंकि परमेश्‍वर ने जगत से ऐसा प्रेम किया कि उन्होंने अपना एकलौता बेटा दे दिया, ताकि जो कोई उन पर विश्‍वास करे वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।
यूहन 3.16

2. परमेश्वर के क्रोध से बचाने के लिए।
जो पुत्र पर विश्‍वास करता है, अनन्त जीवन उसका है। परन्तु जो पुत्र की नहीं मानता, वह जीवन को नहीं देखेगा, लेकिन परमेश्‍वर का गुस्सा उस पर रहता है।
यूह 3.36

इनमें हम भी सब के सब पहले अपने शरीर की लालसाओं में दिन बिताते थे, और शरीर, और मन की मनसाएँ पूरी करते थे, और अन्य लोगों के समान स्वभाव ही से क्रोध की सन्तान थे। 
इफिसियों 2:3 

3. क्योंकि वे परमेश्वर से दूर हैं।
और हम सभी उन्हीं में से थे, जिन का जीवन, पुराने स्वभाव, मन की लालसाओं और उनको पूरा करने में बीत रहा था और दूसरों के समान स्वभाव से परमेश्‍वर की सज़ा के अधीन थे।
इफिसि. 2.3

क्योंकि उस नासमझी की वजह से जो उन में है और मन की सख्ती की वजह से उनकी समझ अंधेरी हो गयी है और वे परमेश्‍वर की ज़िन्दगी से अलग हो गए हैं।
इफिसि. 4.18

4. क्योंकि वे अंधे है।
ताकि तुम लोगो की आँखेंं खोल सको। उन्हें अँधेंरे में से रोशनी और शैतान की ताकत से परमेश्‍वर की तरफ़ मोड़ सको। यह सब इसलिए ताकि वे गुनाहों की माफ़ी और मुझ पर भरोसा करने से शुद्ध किए हुए लोगों के साथ मीरास पा सकें।’
प्रे.काम 26.18

उन विश्‍वास न करने वालों के लिए जिन की बुद्धि को इस दुनिया के ईश्‍वर ने अँधा कर दिया है, ताकि मसीह जो परमेश्‍वर के प्रतिरूप हैं, उनके प्रकाशमय सुसमाचार का प्रकाश उन पर न चमक सके।
2 कुरिन्थ. 4.4

5. क्योंकि वे अंधकार में है।
क्योंकि परमेश्‍वर ही ने हमें अन्धकार के राज्य पर शासन करने वाले से आज़ाद किया है. और वही हमें अपने प्यारे बेटे के राज्य में लाए हैं 
कुलुस्सि. 1.13

क्योंकि एक समय था, जब तुम अंधियारा थे, लेकिन अब यीशु में उजाला हो। इसलिये उजाले की सन्तान की तरह जीवन जियो।
इफिसि. 5.8


6. क्योंकि वे शैतान के अधिकार में हैं।
पिछले समयों में तुम इस संसार के तौर तरीकों, आकाश के अधिकार के शासक यानि वह आत्मा जो अभी भी आज्ञा न मानने वालों में काम करता है, उसी के अनुसार जीवन जीते थे।
इफिसि. 2.2

 सुसमाचार कब और कैसे सुनाना हैं।
परमेश्वर ने हमें सुसमाचार सुनाने के लिए पवित्रआत्मा दिया।

और देखो, परमेश्‍वर के वायदे को मैं तुम्हारे लिए पूरा करने वाला हूँ। लेकिन जब तक स्वर्ग से उस शक्‍ति को न पाओ, यहीं इसी नगर में ठहरो।
लूक 24.49

लेकिन जब पवित्र आत्मा तुम्हारे ऊपर आएगा, तब तुम सामर्थ पाओगे और यरुशलेम, सारे यहूदिया, सामरिया और पृथ्वी के कोने-कोने तक मेरी गवाही दोगे
प्रे.काम 1.8

जहाँ पर वे इकट्ठे थे, वह स्थान उनके प्रार्थना करने के बाद हिल गया। वे सभी पवित्र आत्मा से भर कर परमेश्‍वर का संदेश हिम्मत से देने लगे।
प्रे.काम 4.31

लेकिन जब वह, अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब कुछ सिखाएगा क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा, लेकिन जो कुछ सुनेगा, वही कहेगा, और आने वाली बातें तुम्हें बताएगा। वह मेरी महिमा करेगा, क्योंकि वह मेरी बातों में से लेकर तुम्हें बताएगा।
यूह 16.13-14

परन्तु मददगार अर्थात् पवित्र आत्मा जिसे पिता मेरे नाम से भेजेंगे, वह तुम्हें सब बातें सिखाएगा। जो कुछ मैंने तुम से कहा है, उन बातों की तुम्हें याद दिलाएगा।
यूह 14.26

क्योंकि हमारा सुसंदेश तुम्हारे यहाँ सिर्फ़ शब्दों में नहीं, लेकिन सामर्थ, पवित्र आत्मा और बड़ी निश्चयता के साथ पहुँचाया गया। तुम जानते हो, कि हम तुम्हारे लिये तुम में कैसे बन गए थे।
1 थिस्स. 1.5

मेरी भाषा और उपदेश में ज्ञान की लुभाने वाली बातें नहीं थीं। मेरा संदेश पवित्र आत्मा की शक्‍ति का सबूत था।
1 कुरिन्थ. 2.4

मुक्‍ति का टोप और पवित्र आत्मा की तलवार, जो परमेश्‍वर का वचन है, ले लो। सब तरह की बिनतियों के साथ हर समय पवित्र लोगों के लिए निरन्तर धीरज से प्रार्थना करते रहो।,
इफिसि. 6.17-18


प्रार्थना क्यों और कैसे करना चाहिए ?

यीशु ने अपनी देह में रहने के दिनों में ऊँचे शब्द से पुकार पुकार कर, और आँसू बहा बहा कर परमेश्‍वर से जो उनको मौत से बचा सकते थे, प्रार्थनाएँ और बिनतियाँ की, और उनके समर्पण के कारण उनकी सुनी गई।
इब्रानि. 5.7-8

इसलिए कि तुम पिता की सन्तान ठहरे, उन्होंने हमारे भीतर अपने बेटे की आत्मा को भेज दिया, जो “पिता” कह कर पुकारता है।
गलाति. 4.6

तभी आकाश से एक स्वर्गदूत आकर यीशु को हिम्मत देने लगा।
पीड़ा ही में यीशु और ज़्यादा परमेश्‍वर पिता से बातचीत करने लगे। और यीशु मसीह का पसीना खून की बड़ी बूँदों की तरह ज़मीन पर टपक रहा था।
लूका 22.43-44

इसी प्रकार से पवित्र आत्मा हमारी कमज़ोरियों में सहायता करता है, क्योंकि हम नहीं जानते कि हमें कैसे प्रार्थना करनी चाहिए। किन्तु परमेश्‍वर का आत्मा स्वयं हमारे लिए ऐसी आहें भर कर प्रार्थना करता है, जिसे शब्दों में नहीं कहा जा सकता। जो दिलों को परखते हैं, जानते हैं कि पवित्र आत्मा क्या चाहता है, क्योंकि वह हम में रहते हुए हमारे लिए परमेश्‍वर की इच्छा के अनुसार प्रार्थना करता है।
रोमी 8.26-27

इसलिए सावधान रहो और याद रखो कि तीन साल तक मैंने दिन रात तुम्हें आँसुओं के साथ चेतावनी देना न छोड़ा
प्रे.काम 20.31

मेरी दुआ आपके सामने खुशबूदार धूप
और मेरा हाथ उठाना शाम की कुर्बानी ठहरे।
भजन. 141.2

यीशु ने उन से कहा, यह लिखा है, “मेरा घर प्रार्थना का घर कहलाएगा, लेकिन तुमने इसे चोरों का अड्डा बना दिया है।”
मती 21.13

उनको मैं अपने पवित्र पहाड़ पर ले आकर अपने प्रार्थना के भवन में खुश करूँगा। उनके होमबलि और मेलबलि मेरी वेदी पर स्‍वीकार किए जाएँगे, क्योंकि मेरा भवन सभी देशों के लिए प्रार्थना का घर कहलाएगा।
यशा. 56.7


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