सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

कौन सी बातें यीशु मसीह को परमेश्वर साबित करता हैं ?

 यीशु मसीह का पैदा होना परमेश्वर बनाता है क्योंकि यीशु परमेश्वर होने पर भी मनुष्य बनकर पैदा हुए एक कुँवारी स्त्री के द्वारा और वह कुँवारी मरियम किसी मनुष्य के द्वारा नही बल्कि पवित्र आत्मा परमेश्वर के द्वारा पैदा हुए। शरीर, शरीर के द्वारा पैदा होता है। आत्मा, आत्मा के द्वारा पैदा होता हैं क्योंकि परमेश्वर आत्मा हैं। पवित्रशास्त्र बाइबल प्रमाणित करता है कि यीशु परमेश्वर है। वह अदृश्य याहवे के प्रतिरूप और सारी सृष्टि में सर्वश्रेष्ठ हैं। उन्हीं के द्वारा सब कुछ, चाहे वह स्वर्ग का है, या पृथ्वी का, दिखने वाला या न दिखने वाला, चाहे राजासन या राज्य या प्रधानताएँ या शक्‍ति, सब कुछ उन्हीं के द्वारा और उन्हीं के लिए बना है। कुलुस्सि. 1.15-16 मैं और पिता एक हैं।” यह सुन कर यहूदियों ने यीशु को पत्थरवाह करने के लिए फिर पत्थर उठाए। तब यीशु ने उन से कहा, “मैंने तुम्हें अपने पिता की ओर से बहुत से भले काम दिखाए हैं, उन में से किस काम के लिए तुम मुझे पत्थर मारते हो?” यहूदियों ने उन्हें उत्तर दिया, “भले काम के लिए हम आपको पत्थरवाह नहीं करते, लेकिन परमेश्‍वर की निन्दा के कारण और इसलि

अधिकत्तर लोग यह जानते हैं कि हमें सुसमाचार सुनाना चाहिए।पर मेरा सवाल यह है कि सुसमाचार क्यों सुनाना चाहिए ?

अधिकत्तर लोग यह जानते हैं कि हमें सुसमाचार सुनाना चाहिए। पर मेरा सवाल यह है कि सुसमाचार क्यों सुनाना चाहिए ?  1. पहला कारण यह है कि लोग मरे हुये हैं और उन्हें दूसरी मृत्यु से बचाने के लिए। इसलिए, एक इन्सान के द्वारा बलवईपन की शुरुआत इस दुनिया में हुई और इसी वजह से मौत की भी। सभी के विद्रोही हो जाने के कारण मौत भी सब लोगों में फैलती गयी। रोमी 5.12 तुम जो अपने अपराधों और दुष्टता में मरे हुए थे उन्होंने तुम्हें जीवन दिया। इफिसि. 2.1 इसलिए कि गुनाह की मजदूरी परमेश्‍वर से सदा का अलगाव है, लेकिन हमारे स्वामी यीशु मसीह में परमेश्‍वर का ईनाम अनन्त जीवन है। रोमी 6.23 मौत तथा अधोलोक आग की झील में डाल दिए गए। यह दूसरी मौत है। जिस किसी का नाम जीवन की किताब में लिखा हुआ नहीं पाया गया, वह आग की झील में डाल दिया गया। प्र. व. 20.14-15 इस मृत्यु से बचाने के लिए मसीह ख़ुद मर गया। क्योंकि परमेश्‍वर ने जगत से ऐसा प्रेम किया कि उन्होंने अपना एकलौता बेटा दे दिया, ताकि जो कोई उन पर विश्‍वास करे वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए। यूहन 3.16 2. परमेश्वर के क्रोध से बचाने के लिए। जो पुत्र पर विश्‍वास करता है, अन

Result and Definition of Fornication

Result and Definition of Fornication Fornication is an evil spirit.  Hosea 4:12 And he  needs  soul and body  to commit adultery. What is the meaning of adultery?  1. He who merely looks at a woman with lustful eyes has already committed adultery with her in his heart.  2. Having sex with any man or woman before marriage is adultery.  3. It is adultery to have sex with someone other than your husband or wife.  4. Sexuality is adultery.  5. Lust is adultery.  6. To love before marriage is adultery.  7. Speaking or seeing or hearing about sexuality or lust or sexual things is adultery. 8. Accepting someone other than your master as your master is adultery. 9. Greed of any kind is similar to adultery and adultery is similar to idolatry. 10. Adultery is like a terrible wine. 11. To betray is adultery. Definition : “Fornication” is sexual intercourse between a man and a woman outside of marriage. This is against God's plan. In Old English Bible it is called fornication. The term refers

बाइबल के अनुसार आशा क्या हैं - Baibal Ke Anusaar Aasha Kya Hain By Pastor Ratan Roy - Bagdogra Prayer Center

आशा का अर्थ -  1. आशा एक निश्चित चीज होने की उम्मीद और इच्छा की भावना हैं। 2. एक दृढ़ विश्वास कि भविष्य में कुछ होगा। 3. उम्मीद, अपेक्षा, प्रतीक्षा, प्रत्याशा। 4. अब विश्वास आशा की गई चीजों का आश्वासन और देखी गई चीजों का प्रमाण हैं। [जो भौतिक इंद्रियों द्वारा अनुभव नहीं किया जा सकता है]।  इब्रानियों 11:1 एएमपी 5. विश्वास का अर्थ है, जिसकी हम आशा करते हैं, उसके लिए निश्चित होना। और विश्वास का अर्थ है कि हम चाहे किसी वस्तु को देख नहीं रहे हो किन्तु उसके अस्तित्त्व के विषय में निश्चित होना कि वह है। इब्रानियों 11:1 अब विश्‍वास आशा की हुई वस्तुओं का आश्‍वासन और अनदेखी चीज़ों का सबूत है, इब्रानि. 11.1 6. विश्वास अनदेखी चीज़ों का सबूत हैं जो आशा की गई हैं या आशा की हुई वस्तुओं का भरोसा हैं। इब्रानियों 11:1 RV 7. होने वाली बातों की उम्मीद करना या उन चीज़ों को जो आपने प्रार्थना में मांगा इन्तजार करना उम्मीद के साथ। 8. मेरा पूरा भरोसा‍ प्रभु पर है और उन्हीं का आसरा है। मुझे उन से तसल्ली के शब्द सुनने हैं। भजन. 130.5 जो वचन आपको मिला उसका पूरा होने का उम्मीद करना। ★आशा के विषय में बाइब

क्या आप परमेश्वर की संतान बनना चाहते हैं? Do you want to become a child of God? But How ?

  क्या आप परमेश्वर की संतान बनना चाहते हैं? क्या कोई व्यक्ति अपनी धन संपत्ति के द्वारा परमेश्वर की संतान बन सकता है या फिर किसी मनुष्य के द्वारा या किसी अधिपति के द्वारा या किसी मनुष्य की इच्छा के द्वारा या फिर किसी ऊंचे पद वालों के द्वारा क्या अपने धर्मों कर्मों के द्वारा ? कुछ लोग तो यह भी सोचते हैं कि उन्हें परमेश्वर की संतान बनने के लिए धर्म परिवर्तन की जरूरत हैं ! इन सब बातों के द्वारा कोई भी व्यक्ति परमेश्वर की संतान नहीं बन सकता बल्कि परमेश्वर खुद आपको अपनी संतान बनने का अधिकार देते हैं । पवित्रशास्त्र बाईबल में लिखा है: परन्तु जितनों ने यीशु मसीह को विश्वास करके ग्रहण किया, उस ने उन्हें परमेश्वर की सन्तान होने का अधिकार व हक दिया, अर्थात यीशु मसीह के नाम पर जो विश्वास रखते हैं। यह साफ़ लिखा है कि जितनों ने यीशु मसीह पर विश्वास किया उनको परमेश्वर ने अपनी संतान बनने का अधिकार दिया लेकिन सबको नही क्यों ? क्योंकि उन्होंने यीशु मसीह पर विश्वास नहीं किया । आज लोग अपने अविश्वास के कारण परमेश्वर की संतान नहीं बन पा रहे हैं। बाईबल में ये भी लिखा है कि: क्योंकि परमेश्वर ने दु

आज लोग किस रीति से प्रार्थना का ग़लत प्रयोग कर रहे हैं?

  जिस विषय के लिए आप प्रार्थना कर रहे हैं यदि उस विषय को न समझे तो परमेश्वर आपको कैसे उत्तर देगा ? यदि मैं किसी भी विषय के लिए प्रार्थना करू और मात्र अच्छे शब्दों को ही बोलता रहूं और न समझूँ तो क्या मुझे जवाब मिलेगा ? शायद ही जवाब मिलेगा ? जो विषय को आप समझते है उसी विषय पर प्रार्थना करना चाहिए। किसी के प्रार्थना को नक़ल न करें। परमेश्वर दिखावटी प्रार्थना को नही सुनता। “अपनी विनती में अर्थहीन शब्दों को दोहराते न जाओ, जैसा अविश्वासी करते हैं क्योंकि उनका मन का विचार है कि शब्दों के अधिक होने के कारण ही उनकी विनती सुनी जाएगी. इसलिए उनके समान न बनो क्योंकि तुम्हारे स्वर्गीक पिता परमेश्वर को विनती करने से पहले ही तुम्हारी आवश्यकताओं का अनुभव रहता है. इसलिए समझ बूझकर प्रार्थना करो। स्वार्थी प्रार्थना :: तुम अपनी लालसा पूरी नहीं कर पाते और इसी लिए हत्‍या करते हो। तुम हर चीज के लिए ईष्‍या करते हो और पाते नहीं और इसलिए लड़ते-झगड़ते रहते हो। तुम प्रार्थना नहीं करते, इसलिए तुम्हारे पास कुछ नहीं होता। जब तुम मांगते भी हो तो इसलिए नहीं पाते कि अपने स्वार्थ के लिये प्रार्थना करते हो। त

धर्म और धार्मिकता में क्या फर्क है?

  धर्म और धार्मिकता में क्या फर्क है ? धर्म मनुष्य के सिद्धांतों पर आधारित होता है धार्मिकता परमेश्वर के आज्ञा पर आधारित होता है। धर्म मनुष्यों के बनाये हुए नियमों का सिद्धांतों का आज्ञाओं का आधार है और मनुष्य एक प्रकार के धर्म के अंधकार में तथा धर्म के घमंड में जीवन जी रहा है। धर्म की प्रमुख शिक्षा शारीरिक नियमों पर आधारित हैं जैसे क्या खाना है क्या नहीं खाना हैं क्या पहनना हैं क्या नहीं पहनना हैं । धर्म एक प्रकार का शारीरिक रोकथाम की शिक्षा प्रदान करती हैं जो मनुष्य के किसी काम की नहीं। धर्म शारीरिक नही परन्तु आत्मिक क्षेत्र का भाग है परंतु धर्म मे आत्मिक जीवन की बात नहीं सिर्फ और सिर्फ शारीरिक नियम ही है। इसलिए धर्म मनुष्यों का बनाया हुआ सिद्धांत है। धार्मिकता धर्म का विपरीत है धार्मिकता परमेश्वर के बनाए हुए नियमों का सिद्धांतों का आज्ञाओ का आधार है। धार्मिकता आपको धर्म के बंधनों से छुटकारा प्रदान करती है। धार्मिकता शारीरिक नियम पर आधारित नहीं है परंतु आत्मिक जीवन पर आधारित हैं। धार्मिकता शारीरिक सिद्धांतों पर आधारित नहीं है परंतु धार्मिकता आत्मिक सिद्धांतों पर आधारित है जो परमेश्व